श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन 24 अवतार व समुद्र मंथन की कथा सुन मंत्रमुग्ध हुए लोग

श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन 24 अवतार व समुद्र मंथन की कथा सुन मंत्रमुग्ध हुए लोग

संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है: गणेश दत्त शास्त्री

ऊना/सुशील पंडित : जिला ऊना के गांव वदोली के ठाकुरद्वारा मंदिर के प्रांगण में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन कथा व्यास गणेश दत्त शास्त्री जी ने भगवान के चौबीस अवतारों की कथा के साथ-साथ समुद्र मंथन की बहुत ही रोचक एवं सारगर्भित कथा सुनाते हुए कहा कि यह संसार भगवान का एक सुंदर बगीचा है।यहां चौरासी लाख योनियों के रूप में भिन्न- भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं। जब-जब कोई अपने गलत कर्मो द्वारा इस संसार रूपी भगवान के बगीचे को नुकसान पहुंचाने की चेष्टा करता है तब-तब भगवान इस धरा धाम पर अवतार लेकर सजनों का उद्धार और दुर्जनों का संघार किया करते हैं ।

समुद्र मंथन की कथा सुनाते हुए कहा कि मानव हृदय ही संसार सागर है। मनुष्य के अच्छे और बुरे विचार ही देवता और दानवों के द्वारा किया जाने वाला मंथन है। कभी हमारे अंदर अच्छे विचारों का चिंतन मंथन चलता रहता है और कभी हमारे ही अंदर बुरे विचारों का चिंतन मंथन चलता रहता ।
कथा व्यास गणेश दत्त शास्त्री जी ने बताया कि जिसके अंदर के दानव जीत गया उसका जीवन दु:खी, परेशान और कष्ट कठिनाइयों से भरा होगा और जिसके अंदर देवता जीत गया उसका जीवन सुखी, संतुष्ट और भगवत प्रेम से भरा हुआ होगा । इसलिए हमेशा अपने विचारों पर पैनी नजर रखते हुए बुरे विचारों को अच्छे विचारों से जीतते हुए अपने मानव जीवन को सुखमय एवं आनंदमय बनाना चाहिए । 

भागवत कथा के दौरान सती चरित्र के प्रसंग को सुनाते हुए भगवान शिव की बात को नहीं मानने पर सती के पिता के घर जाने से अपमानित होने के कारण स्वयं को अग्नि में स्वाह होना पड़ा था।  उत्तानपाद के वंश में ध्रुव चरित्र की कथा को सुनाते हुए कथा व्यास जी ने समझाया कि ध्रुव की सौतेली मां सुरुचि के द्वारा अपमानित होने पर भी उसकी मां सुनीति ने धैर्य नहीं खोया जिससे एक बहुत बड़ा संकट टल गया। परिवार को बचाए रखने के लिए धैर्य संयम की नितांत आवश्यकता रहती है। भक्त ध्रुव द्वारा तपस्या कर श्रीहरि को प्रसन्न करने की कथा को सुनाते हुए बताया कि भक्ति के लिए कोई उम्र बाधा नहीं है। भक्ति को बचपन में ही करने की प्रेरणा देनी चाहिए क्योंकि बचपन कच्चे मिट्टी की तरह होता है उसे जैसा चाहे वैसा पात्र बनाया जा सकता है। गणेश दत्त शास्त्री जी ने कहा कि व्यक्ति अपने जीवन में जिस प्रकार के कर्म करता है उसी के अनुरूप उसे मृत्यु मिलती है।  उन्होंने कहा कि ध्रुव की साधना,उनके सत्कर्म तथा ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा के परिणाम स्वरूप ही उन्हें वैकुंठ लोक प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा  कि संसार में जब-जब पाप बढ़ता है, भगवान धरती पर किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैं। 

उन्होंने कहा कि कलयुग में भी मनुष्य सतयुग में भगवान कृष्ण के सिखाए मार्ग का अनुसरण करे तो मनुष्य का जीवन सफल हो सकता है। उन्होंने बताया कि पाप के बाद कोई व्यक्ति नरकगामी हो, इसके लिए श्रीमद् भागवत में श्रेष्ठ उपाय प्रायश्चित बताया है। कथा के साथ साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किए गए। साथ ही प्रतिदिन श्री भागवत महापुराण की आरती के बाद भण्डारे का आयोजन भी किया जा रहा है।