वित्त मंत्रायल की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, अभी नहीं मिलेगी महंगाई से राहत

वित्त मंत्रायल की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, अभी नहीं मिलेगी महंगाई से राहत

नई दिल्लीः वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आम लोगों को जल्द महंगाई से राहत मिलने वाली नहीं है। मिनिस्ट्री ने अपने एनुअल इकोनॉमिक रिव्यू में कहा कि थोक महंगाई के कम हुए आंकड़ों और रिटेल महंगाई के आंकड़ों के बीच अभी अंतर काफी बड़ा है। टमाटर, अदरक, मिर्च, बैंगन और जीरा जैसे किचन के सामान की कीमतें आसमान पर है। आम लोगों की जेब इन सामानों को खरीदने पर ही ढीली हो रही है। अब जो वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट सामने आई है वो और भी ज्यादा डराने वाली है। वित्त मंत्रालय ने अपनी रिपोर्ट में साफ कहा दिया है कि आने वाले दिनों में आम लोगों को महंगाई से राहत नहीं मिलने वाली हैं। रोजमर्रा के खाने के सामान की कीमतें दोगुनी हो गई है। वित्त मंत्रालय ने इसका जिम्मेदार हीटवेव और बढ़ती गर्मी जैसे जियोग्राफिकल प्रभाव को ठहराया है।

वित्त मंत्रालय ने अपनी एनुअल इकोनॉमिक रिव्यू में कहा कि होल सेल प्राइस इंडेक्स यानी डब्ल्यूपीआई में लगातार गिरावट देखने को मिली है। जिसका असर रिेटेल इंफ्लेशन पर काफी धीमी गति देखने को मिल रहा है। इसके अलावा अल नीनो प्रभाव भी देखने को मिल रहा है। इन्हीं कारणों की वजह से कंज्यूमर की स्थिति और खराब होने की आशंका है। मंत्रालय ने कहा कि लोन डिमांड पर मॉरेटरी पॉलिसी का धीमा प्रभाव महंगाई की शुरुआत को कम कर सकता है। सालाना आधार पर मई में खुदरा महंगाई घटकर 25 महीने के निचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर आ गई थी। महंगाई के गिरते आंकड़े भारत में मूल्य वृद्धि में कमी की तस्वीर पेश कर सकते हैं, लेकिन थोक और खुदरा आंकड़ों के बीच अंतर अभी भी बड़ा है। भारत की थोक महंगाई मई में मुख्य रूप से खनिज तेल, बुनियादी धातुओं और कच्चे पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कीमतों में गिरावट के कारण 3.48 फीसदी कम हो गई थी। डेटा से पता चलता है कि खाद्य पदार्थों की कीमतों में ओवरऑल तेजी देखने को मिली है, मसालों पर भी असर पड़ा है।

भारत के कृषि प्रधान इकोनॉमी होने के कारण, अल नीनो का प्रभाव आमतौर पर बाजारों के लिए चिंता का कारण रहा है। वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट में कहा गया है कि​ भू-पॉलिटिकल इश्यूज और अल नीनो के प्रभाव से वित्त वर्ष 2024 के ग्रोथ में थोड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है। रिपोर्ट में कहा कि जियो पॉलिटिकल टेंशन, ग्लोबल फाइनेंशियल सिस्टम में बढ़ी हुई अस्थिरता, ग्लोबल शेयर बाजारों में करेक्शन, अल नीनो का असर आदि शामिल हैं। अल नीनो के पूर्वानुमान ने पॉलिसी मेकर्स को तुअर, उड़द और गेहूं पर स्टॉक लिमिट लगाने और 2024 के मध्य तक चीनी निर्यात पर कैप लागू करने के लिए मजबूर किया था। रॉयटर्स ने वीरवार को सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि भारत में सामान्य से कम मानसून के कारण गर्मियों में बोए जाने वाले चावल की बुआई में सालाना आधार पर 26 प्रतिशत की गिरावट आई है। इससे वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि का संकेत है।

उत्पादन में नरमी भी सप्लाई चेन में परेशानी का संकेत है। कम प्रोडक्शन की वजह से सरकार और अधिक प्रतिबंध लगा सकती है। जिसकी वजह से भारतीय बाजारों के एक्सपोर्टर्स को संघर्ष करना पड़ेगा और ग्लोबल लेवल पर प्राइस बढ़ेंगे। रॉयटर्स ने एक ग्लोबल बिजनेस हाउस के सिंगापुर स्थित डीलर के हवाले से कहा कि सप्लाई की कंडीशन बेहद खराब है और भारतीय निर्यात में कमी से ग्लोबल लेवल पर महंगाई में इजाफा हो सकता है। इंडियन इकोनॉमी अभी भी रूस-यूक्रेन वॉर के कारण सप्लाई परेशानी के परिणामों से उबर रही है और आगे पॉलिसी सख्त होने से इकोनॉमी में संतुलन प्रभावित हो सकता है और इंडियन कंज्यूमर्स की जेब पर असर पड़ सकता है।