स्वामी विवेकानंद को पढऩे की नहीं धारण करने की आवश्यकता - जम्बाल

स्वामी विवेकानंद को पढऩे की नहीं धारण करने की आवश्यकता - जम्बाल

प्रथम लक्ष्मी बाई , दूसरा स्थान अहिल्याबाई तीसरा स्थान मीराबाई सदन को मिला

बददी/ सचिन बैंसल : स्वामी विवेकानंद के जीवन चरित्र को केवल अध्ययन करने की ही नहीं अपितु धारण करने की आवश्यकता  है। यह बात हिमालया जनकल्याण समिति के मार्गदर्शक कुलवीर जमवाल ने सरस्वती विद्या मंदिर गुल्लरवाला में छात्रों को संबोधित करते हुए कही। वह विवेकानंद जयंती की पूर्व संध्या पर छात्रों से संवाद कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होने गत दिनों वन विहार कार्यक्रम में प्रथम रहे लक्ष्मी बाई सदन, दूसरे स्थान पर आए अहिल्याबाई सदन व तीसरा स्थान मीराबाई सदन को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।

विवेकानंद जयंती पर बोलते हुए कुलवीर जमवाल ने बताया कि आध्यात्मिक महापुरुष स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक प्रभावशाली परिवार में हुआ। उनका असली नाम नरेंद्र नाथ था। 25 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद उनका नाम विवेकानंद पड़ा। रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य विवेकानंद बहुत अच्छे वक्ता थे। वह परम गुरु-भक्त, दूसरों की सेवा करनेवाले और गरीबों के लिए आवाज उठानेवाले थे। विवेकानंद ने 1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म महासम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। वहां उन्होंने इतना अच्छा भाषण दिया कि अमेरिका में लोग भारतीय संस्कृति के कायल हो गए। मीडिया ने उन्हें  साइक्लॉनिक हिंदू नाम दिया। बाद में विवेकानंद ने अपने गुरु के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। 4 जुलाई 1902 को उनका देहांत हो गया।

कुलवीर जमवाल ने आगे बताया कि विवेकानंद जी का कथन था कि दूसरों की मदद के भरोसे मत रहो। हमें अपनी मदद खुद करनी है। दूसरों की मदद पर भरोसा करना बेकार है। तमाम तरह की शक्तियां हमारे अंदर छिपी हुई हैं। अगर हम अपने हाथ आंखों पर रख लें तो हमें सब तरफ अंधेरा ही नजर आएगा। अगर हाथ हटा लें तो हमें रोशनी दिखाई देने लगेगी। हालांकि यह रोशनी पहले भी थी, बस हमारे देखने की देर थी। कमजोरी का इलाज कमजोरी के लिए रोना या उसकी फिक्र करना नहीं है। हमें अपनी शक्ति और क्षमता पर विचार करना चाहिए। हमारे अंदर अनंत संभावनाएं हैं। वीरता से आगे बढ़ो। एक दिन में सफलता की कोशिश न करो। अपने आदर्श पर डटे रहो। स्वार्थ और ईष्र्या से बचो और उठो, जागो और तब तक रुको नहीं, जब तक मंजिल हासिल न हो जाए। कामयाबी न मिले तो फिक्र मत करो। हिम्मत मत हारो।

कोशिश जारी रखो। नाकामियों से सबक लेकर संघर्ष करते रहो।  भाग्य बहादुर और कर्मठ लोगों का ही साथ निभाता है। पीछे मुडक़र मत देखो। अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अदम्य साहस और असीम धैर्य की जरूरत है, तभी काम पूरे हो पाएंगे।  बिना डरे सच को लोगों के सामने रखो। इसकी परवाह मत करो कि किसी को उससे कष्ट होता है या नहीं। उन्होने आगे बताया कि भलाई का रास्ता ऊबड़-खाबड़ और मुश्किलों भरा है। इस पर चलनेवालों को नाकामी से घबराना नहीं चाहिए। हजारों ठोकरें खाकर भी हमें अपने चरित्र को मजबूत बनाना चाहिए। भूख के आगे धर्म की बात बेकार है। पहले रोटी और फिर धर्म। जब बेचारे गरीब भूखों मर रहे हैं, तब हम उनमें बेकार ही धर्म को ठूंसते हैं। किसी भी धर्म से भूख की आग शांत नहीं हो सकती। तुम चाहे लाखों सिद्धांतों की बात करो, करोड़ों संप्रदाय खड़े कर लो, लेकिन जब तक तुम्हारे पास संवेदनशील हृदय नहीं है, तब तक तुम्हारी धर्म-चर्चा फिजूल है।