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कंज्यूमर कोर्ट ने SBI बैंक को लगाया जुर्माना

चंडीगढ़ः कंज्यूमर कोर्ट ने बैंक को हर्जाना भरने के आदेश जारी किए हैं। दरअसल, सेक्टर-29 बी में रहने वाली 68 वर्षीय गंगा देवी के पति उग्गर राम की 18 सितंबर 2020 को मौत हो गई थी। बुजुर्ग विधवा पहले ही अपने पति के जाने से दुखी थी। ऊपर से एसबीआई बैंक उन्हें और परेशान कर रहा था। जिसको लेकर उसके कंज्यूमर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

गौर हो कि गंगा देवी के पति ने जिंदा रहते हुए बैंक की सेक्टर-30 सी स्थित ब्रांच में दो फिक्सड डिपोजिट्स (एफडी) करवाई थी। पति की मौत के बाद बैंक ने इन एफडी के मेच्योर होने के बाद बुजुर्ग विधवा को रुपए देने की बजाय केस को लटकाया। इसलिए महिला को कंज्यूमर कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। कोर्ट ने बैंक को क्लेम सैटल करने समेत हर्जाना भरने के आदेश जारी किए हैं।

बैंक को 10 हजार हर्जाना और 7 हजार रुपए अदालती खर्च के होंगे भरने 

बैंक को आदेश दिए गए हैं कि संबंधित क्लेम 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित मैच्योरिटी के समय से लेकर रकम जारी करने तक सैटल किए जाएं। इस दौरान सभी दस्तावेजों और बैंकिंग से जुड़ी प्रक्रिया का पालन किया जाए। शिकायतकर्ता महिला को इस सबके चलते हुई मानसिक पीड़ा और शोषण के रूप में 10 हजार रुपए हर्जाना भी बैंक को भरना होगा। वहीं 7 हजार रुपए अदालती खर्च के रूप में भी चुकाने के आदेश बैंक को दिए गए हैं।

2020 में उग्गर राम की हो गई थी मृत्यु 

शिकायत के मुताबिक, मृतक उग्गर राम का एसबीआई में खाता था। 9 अगस्त 2002 को उन्होंने बैंक में 1,71,000 रुपए एफडी के रुप में 2 जनवरी 2005 तक के लिए जमा करवाए थे। वहीं 7 जुलाई 2008 से 7 जुलाई 2009 तक के लिए भी 2,60,000 रुपए की एफडी करवाई थी। 18 सितंबर 2020 को उनकी मृत्यु हो गई थी। पति की मौत के बाद गंगा देवी ने बैंक जाकर दोनों एफडी की रकम दिए जाने की मांग की। बैंक के कहने पर उन्होंने दस्तावेज भी जमा करवा दिए थे। इसके बावजूद बैंक रकम जारी करने में देरी करता रहा। बैंक के इस कृत्य को सेवा में कोताही और गलत व्यापारिक गतिविधियां बताते हुए गंगा देवी ने चंडीगढ़ जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दायर की थी।

आयोग ने भी कहा- बैंक ने सेवा में कोताही बरती

आयोग ने दस्तावेजों को देखकर पाया कि मृतक ने 1,71,000 रुपए 9 अगस्त 2002 को 36 महीने के लिए 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के तहत एफडी के रूप में जमा करवाए थे। इसके लिए बैंक ने उन्हें एसटीडीआर भी दिया था। इसी तरह 2,60,000 रुपए की रकम अलग से एफडी के रुप में 7 जुलाई 2008 को जमा करवाई गई थी। इसका भी एसटीडीआर दिया गया था।

आयोग ने पाया कि सभी दस्तावेज़ जमा करवाने के बाद भी और मैच्योरिटी के बावजूद एफडी की रकम बैंक ने जारी नहीं की थी। ऐसे में बैंक का कृत्य सेवा में कोताही और गलत व्यापारिक गतिविधियों में शामिल होने वाला पाया गया। वहीं केस की सुनवाई के दौरान भी एसबीआई की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ। ऐसे में आयोग ने कहा कि इससे प्रतीत होता है कि बैंक को अपनी सफाई में कुछ नहीं कहना। वहीं बैंक की तरफ से किसी का पेश न होना इसके खिलाफ जाता है।

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