तख्त श्री हजूर साहिब के दर्शन करने के बाद सकुशल लौटा बद्दी के लोगों का जत्था

तख्त श्री हजूर साहिब के दर्शन करने के बाद सकुशल लौटा बद्दी के लोगों का जत्था

गुरूद्वारों के साथ साथ ज्योतिर्लिंग नागेश्वर के भी किए दर्शन

बददी/ सचिन बैंसल :  बद्दी के श्रृद्धालुओं का एक जत्था  महाराष्ट्र राज्य के नादेड़ स्थित सच खंड श्री हजूर साहिब के दर्शन करने के बाद वापस सकुशल लौटा है।  श्री हजूर साहिब में सिखों के दसवें गुरू गुरु गोबिंद सिंह ने अपना अतिंम समय यहीं पर बिताया। इस पवित्र स्थल के साथ दर्जनों उन गुरूओं के गुरूद्वारे है जिन्होंने इस देश को मुगलों की चंगुल से आजाद कराने के लिए अपनी  कुर्बानी दी।  जत्थे के  प्रभारी भाग सिंह चौधरी ने बताया कि सचखंड  गुरूद्वारे के अलावा नगीना घाट, शिकार घाट, माता भागो, माता साहिब कौर, भाई दया सिंह, साहिब जादे, नाम देव और नानक झीड़ा समेत कई प्राचीन और प्रसिद्ध स्थानों पर दर्शन किए। नानक झीरा में  सिखो के पहले गुरू गुरूनानक देव ने पंजा मार कर पानी निकाला। इस गांव में पानी की किल्लत थी और अब यहां पर लगातार पानी आ रहा है। 

उन्होंंने बताया कि पंजाब से दसवें गुरू गुरूगोबिंद सिंह मुगलों के साथ लड़ाई में  अपना पूरा परिवार शहीद होने के  बाद गोदावरी नदी के किनारे रहने लगे यहीं पर उन्होंने गुरूग्रंथ साहिब को गुरू की गद्दी दी। उनके अनुसार अब शब्द को गुरू माना जाएगा। गोदावरी नदी के किनारे उन्हें लक्षमण दास से मिलना हुआ। जिसे गुरू गोविंद सिंह ने बंदा बहादुर बना कर पंजाब में भेजा जिसने सढोरा, समाणा और पंजाब के अन्य स्थानों से मुगलों को भगाया और पंजाब में सिख धर्म का प्रचार किया।   

दल में भ्रमण कर लौटे कृष्ण कौशल ने बताया कि जहां उन्होंने सिखों के गुरूद्वारों के दर्शन किए वहीं सोमवती आमवस्या के दिन नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के  दर्शन करने का भी सौभाग्य मिला। इस मंदिर के साथ एक जनश्रुति है। जब संत नामदेव पूजा करने के लिए इस मंदिर में गए तो वहां पर मंदिर के पुजारियों ने उन्हें नीच जाति का बता कर बाहर निकाल दिया था। वह अपनी कीर्तन मंडली के साथ मंदिर के बाहर कीर्तन करने लगा। तो उन्होंने भगवान शकंर से अपनी फरियाद लगाई कि तेरे धक्के मुझे नहीं पड़े तुम्हारे नाम को पड़े है। इतने में ही भगवान शंकर की कृपा से  मंदिर का दरवाजा का मुंह भगत नाम देव की ओर घुम गया। यह दरवाजा आज भी उसी दिशा में है। जो यह चमत्कार से कम नहीं था। मंदिर के साथ एक चक्की भी है। जो उस दौरान तीन दिन तक लगातार अपने आप नाम देव की चमत्कारी शक्ति से चलती रही और भूखे संतो को भोजन कराती रही।   पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह ने नाम देव के  गांव का नाम उनके नाम से रखा।  दल में भाग सिंह चौधरी, कृष्ण कौशल के अलावा नंबरदार बाबूराम, छज्जु राम, कुलदीप सिंह, बालकिशन, अश्वनी कुमार,  गुरचरण सिंह, सुभाष, राजू, कौशल्या देवी, चरणकौर, बिमला देवी, कमलेश, ओम देवी, बबली और प्रभ शामिल थे।